सोमवार, 17 जुलाई 2017

जब देना पड़ा था श्रीरामजीको भी धर्म परिक्षा


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श्रीराम का वनवास ख़त्म हो चुका था.
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एक बार श्रीराम ब्राम्हणों को भोजन करा रहे थे तभी भगवान शिव ब्राम्हण वेश में वहाँ आये.
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श्रीराम ने लक्ष्मण और हनुमान सहित उनका स्वागत किया और उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया. भगवान शिव भोजन करने बैठे किन्तु उनकी क्षुधा को कौन बुझा सकता था ?
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बात हीं बात में श्रीराम का सारा भण्डार खाली हो गया. लक्ष्मण और हनुमान ये देख कर चिंतित हो गए और आश्चर्य से भर गए. एक ब्राम्हण उनके द्वार से भूखे पेट लौट जाये ये तो बड़े अपमान की बात थी
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उन्होंने श्रीराम से और भोजन बनवाने की आज्ञा मांगी. श्रीराम तो सब कुछ जानते हीं थे, उन्होंने मुस्कुराते हुए लक्ष्मण से देवी सीता को बुला लाने के लिए कहा.
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सीता जी वहाँ आयी और ब्राम्हण वेश में बैठे भगवान शिव का अभिवादन किया. श्रीराम ने मुस्कुराते हुए सीता जी को सारी बातें बताई और उन्हें इस परिस्थिति का समाधान करने को कहा.
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सीता जी अब स्वयं महादेव को भोजन कराने को उद्धत हुई. उनके हाथ का पहला ग्रास खाते हीं भगवान शिव संतुष्ट हो गए.
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भोजन के उपरान्त भगवान शिव ने श्रीराम से कहा कि आकण्ठ भोजन करने के कारण वे स्वयं उठने में असमर्थ हैं इसी कारण कोई उन्हें उठा कर शैय्या पर सुला दे.
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श्रीराम की आज्ञा से हनुमान महादेव को उठाने लगे मगर आश्चर्य, एक विशाल पर्वत को बात हीं बात में उखाड़ देने वाले हनुमान, जिनके बल का कोई पार हीं नहीं था, महादेव को हिला तक नहीं सके. भला रुद्रावतार रूद्र की शक्ति से कैसे पार पा सकते थे ? हनुमान लज्जित हो पीछे हट गए.
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फिर श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण ये कार्य करने को आये. अब तक वो ये समझ चुके थे कि ये कोई साधारण ब्राम्हण नहीं हैं. अनंत की शक्ति भी अनंत हीं थी. परमपिता ब्रम्हा, नारायण और महादेव का स्मरण करते हुए लक्ष्मण ने उन्हें उठा कर शैय्या पर लिटा दिया.
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लेटने के बाद भगवान शिव ने श्रीराम से सेवा करने को कहा. स्वयं श्रीराम लक्ष्मण और हनुमान के साथ भगवान शिव की पाद सेवा करने लगे.
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देवी सीता ने महादेव को पीने के लिए जल दिया. महादेव ने आधा जल पिया और बांकी जल का कुल्ला देवी सीता पर कर दिया.
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देवी सीता ने हाथ जोड़ कर कहा कि हे ब्राम्हणदेव, आपने अपने जूठन से मुझे पवित्र कर दिया. ऐसा सौभाग्य तो बिरलों को प्राप्त होता है.
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ये कहते हुए देवी सीता उनके चरण स्पर्श करने बढ़ी, तभी महादेव उपने असली स्वरुप में आ गए. महाकाल के दर्शन होते हीं सभी ने करबद्ध हो उन्हें नमन किया.
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भगवान शिव ने श्रीराम को अपने ह्रदय से लगते हुए कहा कि आप सभी मेरी परीक्षा में उत्तीर्ण हुए.
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ऐसे कई अवसर थे जब किसी भी मनुष्य को क्रोध आ सकता था किन्तु आपने अपना संयम नहीं खोया. इसी कारण संसार आपको मर्यादा पुरुषोत्तम कहता है.
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उन्होंने श्रीराम को वरदान मांगने को कहा किन्तु श्रीराम ने हाथ जोड़ कर कहा कि आपके आशीर्वाद से मेरे पास सब कुछ है. अगर आप कुछ देना हीं चाहते हैं तो अपने चरणों में सदा की भक्ति का आशीर्वाद दीजिये.
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महादेव ने मुस्कुराते हुए कहा कि आप और मैं कोई अलग नहीं हैं किन्तु फिर भी देवी सीता ने मुझे भोजन करवाया है इसीलिए उन्हें कोई वरदान तो माँगना हीं होगा.
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देवी सीता ने कहा कि हे भगवान, अगर आप हमसे प्रसन्न हैं तो कुछ काल तक आप हमारे राजसभा में कथावाचक बनकर रहें. उसके बाद कुछ काल तक भगवान शिव श्रीराम की सभा में कथा सुना कर सबको कृतार्थ करते रहे।
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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सोमवार, 3 अप्रैल 2017

●●●●राजस्थानी घुडल पर्व कि सच्चाई●●●●


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हिन्दुत्व को बचाने के लिये आपके द्वारा इस सत्य से हिन्दुओं को अवगत कराना आवश्यक है नही तो कालांतर मे अर्थ का अनर्थ हो सकता है !

मारवाड़ में होली के बाद एक पर्व शुरू होता है ,जिसे घुड़ला पर्व कहते हैं ।जिसमें कुँवारी लडकियाँ अपने सर पर एक मटका उठाकर उसके अंदर दीपक जलाकर गांव और मौहल्ले में घूमती है और घुडला गीत गाती है --
" घुड़लो घूमे छे जी घूमे छे ,घुड़ले रै बांधियो सूत !
घुड़लो घूमे छे जी घूमे छे !!
सुहागण बाहरे आव  !
घुड़लो घूमे छे जी घूमे छे !!
अब यह घुड़ला क्या है ? घुड़ला घुमाने के पीछे क्या उद्देश्य था ?
कोई नहीं जानता है ,इस पर्व की मूल घटना विस्मृत होने से उद्देश्य से ठीक विपरीत भाव से अत्याचारी घुड़ला खान की पूजा शुरू हो गयी ।यह भी ऐसा ही घटिया ओर घातक षड्यंत्र है जैसा कि अकबर को महान बोल दिया गया !
दरअसल हुआ ये था की घुड़ला खान अकबर का मुग़ल सरदार था और अत्याचार और पैशाचिकता में भी अकबर जैसा ही गंदा पिशाच था !
ज़िला नागोर राजस्थान के पीपाड़ गांव के पास एक गांव है कोसाणा ! उस गांव की लगभग 200 कुंवारी कन्याएं गणगौर पर्व की पूजा कर रही थी, वे व्रत में थी गणगौर व्रत करने वाली कन्याओं और महिलाओं को  मारवाड़ी भाषा में तीजणियां कहते हैं !
गाँव के बाहर मौजूद तालाब पर गौरी पूजन करने हेतु  सभी तीजणियां एकत्र हुई थी ।उधर से ही घुडला खान अपनी फ़ौज के साथ निकल रहा था,उसकी गंदी नज़र उन  तीजणियों पर पड़ी तो उसकी वंशानुगत इस्लामी पैशाचिकता जाग उठी !
उसने बलात्कार के उद्देश्य से तीजणियों का अपहरण कर लिया , जिस किसी  ने विरोध किया वही  मौत के घाट उतार दिया गया !
इसकी घटना की सूचना घुड़सवारों ने जोधपुर के राव सातल सिंह राठौड़ जी को दी !
राव सातल सिंह जी और उनके घुड़सवारों ने घुड़ला खान का पीछा किया और कुछ समय मे ही घुडला खान को रोक लिया। घुडला खान का चेहरा पीला पड़ गया उसने
सातल सिंह जी की वीरता के बारे मे सुन रखा था ! उसने अपने आपको संयत करते हुये कहा, " राव तुम मुझे नही दिल्ली के बादशाह अकबर को रोक रहे हो इसका ख़ामियाज़ा तुम्हें और जोधपुर को भुगतना पड़ सकता है "
राव सातल सिंह बोले , पापी दुष्ट ये तो बाद की बात है पर अभी तो मैं तुझे तेरे इस गंदे काम का यहीं पर दण्ड  देता हूँ!
राजपुतों की तलवारों ने दुष्ट मुग़लों के ख़ून से प्यास बुझाना शुरू कर दिया था ,
संख्या मे अधिक मुग़ल सेना के पांव उखड़ गये , राव सातल सिंह और उन की वीर सेना ने भागती मुग़ल सेना का पीछा कर ख़ात्मा कर दिया गया ! दुष्ट घुड़ले खान का शरीर तीरों से छलनी हो चुका था  . राव सातल सिंह ने तलवार के भरपुर वार से घुडला खान का सिर धड़ से अलग कर उसे हिन्दू महिलाओं के अपमान का दण्ड दे दिया !
राव सातल सिंह ने सभी तीजणियों को मुक्त करवा उनकी सतीत्व की रक्षा करी !
इस युद्ध में वीर सातल सिंह जी अत्यधिक घाव लगने से वीरगति को प्राप्त हुये !
कोसाणा  गाँव के तालाब पर सातल सिंह जी का अंतिम संस्कार किया गया, वहाँ मौजूद सातल सिंह जी की समाधि उनकी वीरता और त्याग की गाथा सुना रही है !
गांव वालों ने  तीजणियों को दुष्ट घुडला खानका सिर सौंप दिया !
बच्चियों ने घुडला खान के सिर को घड़े मे रख कर उस घड़े मे जितने घाव घुडला खान के शरीर पर हुये उतने छेद किये और फिर पुरे गाँव मे घुमाया और हर घर मे रोशनी की गयी !
यह है घुड़ले की वास्तविक कहानी जिसके बारे में अधिकांश लोग अनजान हैं ।
लोग हिन्दु राव सातल सिंह जी को तो भूल गए और पापी दुष्ट घुड़ला खान को पूजने लग गये !
इतिहास की सचाई जानें , हर भारतीय को इस बारे में बतायें और वीर सातल सिंह राठौड़ की पूजा करें  !
वीर सातल सिंह जी को याद करो नहीं तो हिन्दुस्तान के ये तथाकथित गद्दार इतिहासकार उस घुड़ला खान को देवता बनाने का कुत्सित प्रयास करते रहेंगे जैसे हर सड़क किनारे दफन किए गए भिखारियों  को गाजी बाबा बना कर हिन्दुओं से सजदे करवाए जाते हैं .......

(((((भ्राता Mahendra Meghwanshi द्वारा प्रेषित टिप्पणी का संपादित भाग .
उन्हें यह जानकारी Girvar Rathore Udeka जी द्वारा प्राप्त हुई , कुछ जानकारी मेरे पास भी थी जिसे संयुक्त प्रयास से पूर्ण रूप प्राप्त हुआ है @दिनेश विस्सा अकिल))))

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

●●●●जब अंग्रेज पहली बार ओडिशा आए थे●●●●

अंग्रेजों ने सबसे पहले साल 1633 में ओडिशा के तटवर्त्ती क्षेत्रों में अपना वाणिज्य केन्द्र बनवाया । उन्हें मोगल सल्तनत से इसकी अनुमति पत्र तो मिला था मगर उन गोरों ने जहाँ उनको जगह दिया गया था वहीं वाणिज्य केंद्र न बनाकर एक स्थानीय व्यक्ति के जगह पर बना दिया.....
फिर क्या था ....
अगले साथ आठ वर्षों तक दोनों पक्षों के बीच  झगडे दिन व दिन बढते चलेगये और अन्ततः
1644 को स्थानीय लोगों ने अंग्रेज व्यापारीओं पर
ऐसे हमले किए कि वह लोग सब छोडछाडकर
पास के जंगल मे भाग गये.....

अंग्रेज उस हमले से इतने भयभीत हो गये थे कि जंगल में ही कुछ दिनों तक छिपे रहने को सही समझा....

उस जंगल में फलदार वृक्ष कम ही थे मगर
ताड के वृक्ष बहुतायत में मिलजाते थे....
वहाँ उन ताड के वृक्षों में से नशीली रस ताडी निकालने को हांडी लटकाया गया था.....
मारे भुख और प्यास के अंग्रेज वह ताडी़ पिइ कर
आखीर में बिमारी का शिकार होकर मरने लगे.....

पुरानी अंग्रेजी डक्यूमेंट के मुताबिक इस भयनाक अवस्था से बच निकलकर मुट्ठी भर अंग्रेज मद्राज पहँच पाए थे.. .....
मद्राज में भी जब अंग्रेज पैर जमाने में विफल हुए वो बंगाल कि ओर कुच कर गये....

यदि बंगाल में इन कुत्तों कि वाजेगाजे के साथ स्वागत न किया गया होता
वरन पत्थर मारकर भगाया गया होता तो शायद
वह फिर भारत न लौटते उसी जाहाज में  इंलण्ड चलदिए होते.....

●●●●मनुस्मृति नहीं आपका सोच गलत है●●●●

ब्राह्मणां जायमानो हि पृथिब्यामधिजायते ।

ईश्वरः सर्वभूतानां
धर्मकेशस्य गुप्तये ।। 99 ।।

सर्व स्वं ब्राह्मणस्येदं
यत्किञ्चिज्जगतीगतम् ।
श्रेष्ठवेनाभिजनेनेदं
सर्व वै ब्राह्मणोऽर्हति ।। 100 ।।

[[मनुस्मृति प्रथमोध्याय ]]

ब्राह्मण का उत्पन होना ही पृथ्वी मे श्रेष्ठ होता है ,क्युँ कि संपूर्ण जीवोँ के धर्मरुपी खजाने कि रक्षार्थ वह प्रभु है (अर्थात् धर्मोपदेश ब्राह्मण द्वारा ही होता है) !!99!!

जो कुछ जगत् के पदार्थ है वे सब ब्राह्मण के है ।
ब्रह्मोत्पतितिरुप श्रेष्ठता के कारण
ब्राह्मण सम्पुर्ण को ग्रहण करने योग्य है ।। 100 !!

अब कनैया कुमार जैसे जातिवादी लोग इन दोनोँ श्लोकोँ का अर्थ करते समय
#ब्राह्मण शब्द को जाति विशेष ही समझ बैठते है ।

इसमे मनुमहाराज कि क्या गलती ?
जब आधुनिक मनुष्य ही अर्थ का वीरर्थ करने मे सिद्धहस्थ है ।

पुरातन कालमे
ब्राह्मण,
ब्रह्मवेत्ता विद्वान को कहाजाता
था अर्थात् वे जिन्हे ब्रह्माण्ड का रहस्य ज्ञात होता था
वे जो ज्ञान के सागर होते थे
कालान्तरमे उनके पुत्र कन्या दी ब्राह्मण कहलाये
और यह विशेषज्ञयता निरन्तर बढ़ता चला गया !!

वैज्ञानिक मानसिकता संपन्न व्यक्ति मनुस्मृति मे उत्तरगोलार्ध दक्षिणगोलार्ध ढ़ुंड रहा है
ये उसकी अपनी मानसिकता है
मैँ इसे उसकी मुल्लोँ से प्राप्त मिलावटी ज्ञान ही समझता हुँ !!

मनुस्मृतिमे ऐसे कई विवादित श्लोक है
जिसे मुल्ले ,और जातपात मे अंधे हो चुके निम्नवर्ग के लोगोँ ने समाज के समीप गलत ढ़ंग से पैस किया हुआ है ।

मनुस्मृति गलत नहीँ
आपका सोच गलत है

शनिवार, 4 मार्च 2017

सखी रे जो मैं जानती

सखी रे जो मैं जानती....
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लगभग एक सप्ताह पहले मेरे विद्यालय की एक पुरानी दीवाल में एक नाग देवता दिखे। फिर क्या था, सभी शिक्षक, रसोइया मजदूर और बच्चे एक स्वर में बोल उठे- यह दुश्मन है, इसे जल्द से जल्द मार दिया जाय। वही मनुष्य की राक्षसी आदत! कमजोर के लिए काल होने की प्रकृति। पर जहां सर्वेश बाबू हों, वहां किसी जीव को मार देना तनिक कठिन है। सो किसी की हिम्मत नही हुई कि लाठी चलाये। नाग देवता को यूँ ही छोड़ दिया गया।
   पर नाग देव अगले दिन भी दिखाई दे गए। सर्वेश बाबू की कृपा से उसदिन भी उनके प्राण बचे, पर नाग देव उसी समय उसके अगले दिन भी उपस्थित हो गए। नाग देव तो शिक्षकों की तरह रोज उपस्थित होने लगे थे। इस तरह जब नाग देव पांच दिन लगातार उपस्थित हो गए तो बच्चों में भय फ़ैल गया।अब सर्वेश बाबू भी उनकी रक्षा कर पाने में असमर्थ होने लगे, पर यह तो तय था कि हत्या नही होगी। सो संपेरे को बुलाया गया और नाग देवता को कैद करने की योजना बनी। जब संपेरे ने देवता को उनकी कुटिया से निकाला तो ज्ञात हुआ कि देव एकल नही हैं, देवी भी साथ हैं। फिर सारा किस्सा साफ हो गया, कि नाग देवता नित्य ही प्रेयसी से अभिसार के लिए आते थे। संपेरे महोदय तो प्रेमी युगल को दो सौ रुपयों के साथ ले गए, पर सर्वेश बाबू सोचने लगे, काश कि नाग देवता ने प्रेम न किया होता। अगर प्रेयसी का प्रेम न होता तो पांच दिन तक रक्षा करने के बाद भी छठे दिन महोदय मृत्यु के मुख में न आते। आखिर नागराज को प्रेम ले ही डूबा।
सोचता हूँ, यह प्रेम कभी सुख नही देता। वस्तुतः किसी पराये के लिए दुःख भोगने का नाम ही प्रेम है। यदि ऐसा न होता, तो सूरदास जैसा महान भक्त कवि अपने आराध्य का प्रेम लिखते समय सिर्फ राधिका के अश्रु नही लिखता। सृष्टि की सबसे चर्चित, पूजित और पवित्र प्रेम कथा के गायक सूर यह तो कभी नही कहते, कि
हरि श्रमजल भीज्यो उर अंचल,
तिहिं लाचन न धुवावत सारी...
फिर आगे बढ़ कर यह नही गाते, कि
अधमुख रहति अनत नहीं चितवति,
ज्यों गथ हारे थकित जुआरी...
पर शायद यह "गथ" हारना ही प्रेम करना होता है।   प्रेम ही एक ऐसा जुआ है जिसका खिलाडी सबकुछ हारने के लिए दाव लगाता है। यदि हारे नहीं तो फिर प्रेम कहाँ किया। भले हर प्रेमी पीड़ा के क्षणों में कहता फिरे कि " सखी रे जो मैं जानती प्रीत किये दुःख होय..." पर यह सिर्फ कहने के लिए ही कहा जाता है। अगर दुःख सहने का साहस न होता तो प्रेम क्यों करता कोई? जीत जाने पर प्रेम मर जाता है,पर हार जाने पर प्रेम अमर हो जाता है। बच्चन कहते हैं-
पा जाता तो हाय न इतनी
प्यारी लगती मधुशाला।
प्रेम में जीत जाने वालों को तो तुलसी बाबा की तरह कभी न कभी सुनना ही पड़ता है, कि
धिक् धिक् ऐसे प्रेम को, कहाँ कहौं हौं नाथ।
पर प्रेम में हारने वालों को इसका कोई भय नहीं।कृष्ण के प्रेम में जीत कर रुक्मिणी हार जाती हैं, और हार कर राधिका जीत जाती हैं। तनिक सोचिये तो, वृंदावन की फुलवारियों को अपनी आंसुओं से सींचती राधिका के पास ऐसा क्या था जिसने रुक्मिणी की सेवा को हरा दिया? सिर्फ अश्रु ही न? प्रेम अश्रुओं के तराजू पर ही तौला जाता है, जब तक अँखियन से लोर की नदी न बहे तब तक प्रेम प्रमाणित नही होता। प्रेम में लोर सबसे आवश्यक तत्व है। घनानंद कहते हैं-
घन आनंद नीर समीर बिना, बुझिबे को न और उपाय लहौं।
हृदय की आग बुझाने के लिए अश्रुओं से अधिक कारगर और कुछ नहीं। प्रेम हृदय की आग ही तो है, यदि अश्रुओं से इसे बुझा लिया तो जी लिए अन्यथा जला कर राख कर देगा। मेरे विद्यालय वाले नाग देवता को रोने का मौका नही मिला तो कैद में जलना ही पड़ा न।
खैर! मैंने संपेरे से कहा था- भाई, इन दोनों को एक ही डब्बे में रखना। पता नहीं उसने क्या किया होगा।

........लेखक.........
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

अन्न और अन्नाद


अन्न का अर्थ है भोग और अन्नाद का भोक्ता | मनुष्य अनाज खाता है इसलिए अनाज अन्न और मनुष्य अन्नाद ,,इसी तरह शाकाहारी पशु मासाहारी के लिए अन्न और मासाहारी अन्नाद होंगे |
पृथ्वी ,प्राण शरीर के लिए अन्न तथा शरीर इनके लिए अन्नाद होगा - " प्राण: वे अन्नम् -तै. भृगु. १.७ अर्थात प्राण अन्न है | शरीरमन्नादम् - तै. भृगु. १.७ अर्थात शरीर अन्नाद अर्थात भोक्ता है |
एतेरयेआरण्यक में पृथ्वी को अन्न तथा अग्नि को अन्नाद कहा है -
" पृथिवी चान्नमेतन्मयानि ह्मन्नानि भवन्ति ज्योतिश्र्च वायुश्र्चान्नादमेताभ­्या हीद सर्वमन्नमत्त्यावपनमा­काश आकाशो हीद सर्व समोप्यत आवपन ह वे समानाना भवति य एव वेद ,इति || - ऐत. आ. ३/१/२ अर्थात - पृथ्वी अन्न है अग्नि और वायु अन्नाद है | आकाश अवपन है क्यूंकि अन्न और अन्नाद भोग और भोक्ता आकाश में फैले है |
अब औषधि को अन्न तथा प्राणधारियों को अन्नाद बताते हुए लिखते है -
" प्राणभृतोsन्नादमोषधि­वनस्पतीन्हि प्राणभृतोsदन्ति ,इति " - ऐत. आ. २/३/३
औषधिया वनस्पति अन्न है और प्राणधारी अन्नाद है |
यहा औषधी वनस्पति से विभिन्न भोग मानव आदि प्राणियों के सिद्ध है - जैसे निवास स्थान बनाना (घोसला से लेकर मकान ) , दवाइयों के प्रयोग में , भोजन में , कुर्सी ,मेज ,पलंग और आग जलाने आदि में |
अब उभयदंत प्राणियों को भोक्ता तथा एक पंक्ति वालो को भोग -
" तेषा य उभयतोदन्ता: पुरुषस्यानुविधा विहितास्तेsन्नादा अन्नमितरे पशव स्तसमात्त इतरान्पशुनधीव चरन्त्यधीव हमन्नेन्नादो भवति -ए.आ. २/३/४
अर्थात मनुष्य समान दोनों तरफ दांत वाले अन्नाद है और एक पंक्ति दांत वाले अन्न अर्थात भोग है |
यहा इस पंक्ति से कुछ लोग पशु मॉस खाने का पक्ष लेने लगते है लेकिन यहा भोग और भोक्ता रूप में अन्न अन्नाद की बात है ,भोग अनेको प्रकार से होता है | जिसमे केवल भक्षण ही नही बल्कि सवारी , दूध पीना , खेत आदि कार्यो में उपयोग लेना भी है | क्यूंकि यहा दांतों के आधार पर वो पशु भी आ गये जिनका मॉस भक्षण उन शास्त्रों में भी निषेध है जिनको हम क्षेपक या अनार्ष कोटि में रखते है जैसे - घोडा ,गधा ,खच्चर इत्यादि | अत: उभयदांत वाले मासाहारियो जानवरों के लिए तो यह एक पंक्ति वाले भक्ष्य है लेकिन मनुष्यों के लिए नही किन्तु मनुष्य के भोग होने से अन्न अवश्य है |
इस बात को अन्य प्रमाणों से भी समझाते है -
अर्थववेद की श्रुति इस बात का निर्देश करती है " पय: पशुना रसमोषधीना " - अर्थव. १९/३१/५ अर्थात पशुओ से दूध ,औषधियों से रस लेता हु |
पयो धेनुना रसमोषधीना जवमर्वता कवयो य इन्वथ - अर्थव. ४/२७/३ अर्थात गोओ से दूध ,औषधियों से रस तथा घोड़ो से वेग ...
यहा बताया है कि किस किस का किस रूप में भोग लेना चाहिए | मॉस रूप में पशुओ का मनुष्य के लिए भगवती श्रुति में विधान न होने से उपरोक्त श्लोको का मॉस भक्षण में तात्पर्य लेते है तो यह श्रुति विरुद्ध होने से अमान्य ही होगा |
केवल अन्न कहने मात्र से कोई भक्ष नही हो जाता है क्यूंकि मनुष्य को भी अन्न कहा है - " अहमन्नमहमन्नम | अहमन्नादोsमन्नादोsहम­न्नाद: | " - तै. भृगु. १०
अर्थात मै अन्न हु,मै अन्न हु ,मै अन्न हु | आगे कहा है मै अन्नाद हु मै अन्नद हु मै अन्नाद हु |
इस वाक्य से मनुष्य अन्न सिद्ध हो रहा है लेकिन क्या कोई मनुष्य के मॉस का भक्षण मनुष्य को अन्न होने से इस वचन से कर देगा बल्कि यहा यह अर्थ है कि मनुष्य भोग है तो किसी अन्य का भोक्ता भी | जैसे नौकर चाकर का रूप में मनुष्य भोग और राजा रूप में भोक्ता इस तरह मनुष्य के लिए मनुष्य अन्न और अन्नाद हुआ |
इस विषय पर एक और उत्तम तर्क देते है - जैसे माता ,बहन और पत्नि इन सभी को स्त्री कहा है लेकिन विवाह सम्बन्ध के लिए पत्नि ही है अन्य नही उसी तरह पशु , अनाज ,वायु ,पृथ्वी आदि को अन्न कहने से इनमे केवल अनाज ही मनुष्य के खाने के लिए है अन्य द्रव्य नही |

#दिनेश शर्मा

गुरुवार, 2 मार्च 2017

बीरबल की चतुराई

बादशाह अकबर हमेशा बीरबल की बुद्धिमत्ता से बहुत ही प्रसन्न रहते थे| यह सब देखते हुए दरबार के दुसरे लोग बीरबल से बहुत ज्यादा इर्ष्या करते थे| दरबार में कई दुसरे दरबारी प्रधान सेवक बनना चाहते थे जबकि इस पद पर बीरबल काम करते थे| एक दिन अकबर ने बीरबल की भरे दरबार में बहुत प्रशंसा की| बीरबल की ऐसी प्रसंशा देखकर एक दरबारी को बहुत गुस्सा आ गया और उसने बादशाह अकबर से कहा "जहाँपनाह अगर आप इज़ाज़त दें तो मैं बीरबल से 3 सवाल पूछना चाहता हूँ| अगर बीरबल ने मेरे तीनों सवालों का सही उत्तर दे दिया तभी आप बीरबल की प्रशंसा कीजिये|” बादशाह तुरन्त राज़ी हो गए क्यूंकि बादशाह हमेशा ही बीरबल की परीक्षा लेने के लिये उत्सुक रहते थे| बादशाह अकबर से इजाज़त लेकर दरबारी ने बीरबल से अपने तीनों सवाल पूछे : 1- आसमान में कितने सितारे हैं? 2- पृथ्वी का केन्द्र कहाँ पर है? 3- दुनिया में कितने पुरुष और कितनी स्त्रियाँ हैं? और बीरबल के सामने एक शर्त रख दी की अगर बीरबल इन तीनों सवालों का सही जवाब नहीं दे पाए तो बीरबल प्रधान सेवक के पद से इस्तीफा देंगे| बीरबल ने हामी भर दी और पहले सवाल का जवाब देने के लिये तुरन्त ही दरबार में एक भेड़ ले आया और दरबारी से कहा “जितने इस भेड़ के शरीर में बाल हैं, आसमान में उतने ही सितारे हैं| अगर आपको यकीन ना हो तो आप इसके बालों को गिनकर फिर आसमान के सितारों को गिनकर अपनी तसल्ली कर सकते हैं|” दुसरे सवाल का उत्तर देने के लिये बीरबल ने ज़मीन पर कुछ लाइन खिंची और उनके बीच में एक रॉड ज़मीन में गाड़ दी और दरबारी से कहा “यह पृथ्वी का केन्द्र है| अगर आपको विश्वास ना हो तो आप किसी भी जानकार व्यक्ति से जांच पड़ताल करवा सकते हैं|” और तीसरे सवाल का जवाब था “दुनिया में स्त्री को पुरुष के संख्या गिनना थोडा मुश्किल का काम है क्यूंकि यहाँ बहुत से मेरे दरबारी मित्र ऐसे भी हैं जिनकी गिनती ना तो पुरुषों में और ना ही स्त्रियों में की जा सकती है|” बीरबर द्वारा ऐसे जवाब सुनकर दरबार में बैठे सारे लोग चुप हो गये और बादशाह अकबर बीरबल की चतुराई से बहुत प्रभावित हुए|