शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

जगन्नाथ और 165 साल का अग्यांतवास

(1568 से 1733 AD ) 165 साल तक के समयकाल मेँ पुरी श्री जगन्नाथ मंदिर पर कईवार अफगानी,मुसलमान और मोगल शासकोँ ने हमला किया । हिँदुओँ कि धार्मिक भावनाओँ को ध्वंस्त विध्वंस्त करदेने के लिये मुसलमान शासकोँ नेँ जी तोड़ कोशिश की । रक्तवाहु से कलापाहाड़ , कल्यानमल्ल से तकि खाँ तक जितने भी आक्रमणकारी आये हिँदुओँ के आराध्य देवता श्री जगन्नाथ जी को जीत न लेने तक ओड़िशा को जीतना असंभव और व्यर्थ प्रयास होगा ये समझगये थे । हमलावर आये हार कर चलेगये उन्हे सिर्फ हार और नैराश्य हात लगा । इन यवन आक्रमणकारीओँ से श्रीविग्रह रक्षा हेतु दो वृत्तिभोगी सेवक जाति को नियुक्ति किया गया । इनके वंशज अभी भी पुरी मेँ निवाश करते हे (CHAPA DALEI , AARATA DALEI ) जब कभी आक्रमण की सुचना मिली तिनोँ श्रीविग्रह को अग्यांत स्तान पर स्तानांतरण कर लिया जाता ।

सर्वप्रथम आक्रमण 1568 मेँ रक्तवाहु ने किया था ये एक अफगानी हमलावर जिसने पुरी मेँ तवाही मचाया था । उस समय श्रीविग्रह सोनपुर ले जाकर अग्यांतवास मेँ रखा गया था ।

1607 मेँ हमला हुआ तो श्रीविग्रह कपिलेश्वर मंदिर (पुरी मेँ स्तित एक मंदिर) अग्यांतवास मेँ रखागया था !


1610 मेँ केशु दास नाम से एक मोगल सुवेदार ने श्रीमंदिर मेँ आक्रमण किया था और तिनोँ रथ को आग लगा दिया था ।

जब 1615 साल मेँ तोदरमल्ल का पुत्र कल्यान्मल्ल नेँ पुर्नवार श्रीमंदिर पर हभला किया श्रीविग्रह को ले जाकर चिलिका (LAKE) ह्रद मेँ गुरुवरदाई नामक स्थान पर रखागया था ।

1622 मेँ सुवेदार अहमन् वेग नेँ जब पुरी कुच किया तो भगवान भाई वहन वीरोँ के भुमि माणित्री गड़ अग्यांतवास विताने आये ..!

1624 मेँ फिर हमला हुआ तब श्रीविग्रह साक्षिगोपाल नामके स्थान पर छुपाकर रखागया ।

1647 और 1698 मेँ भयकंर युद्ध हुआ था और मोगल शक्ति को परास्त होना पड़ा था ।

1733 तकि खाँ कटक को नाएव निजाम होकर आया तब सार ओड़िशा मेँ एक अनजाना भय मेँ लोग ड़र रहे थे । 1733 मेँ तकि खाँ नेँ आखरीवार जगन्नाथ पुरी पर हमला किया तब श्रीविग्रह को गंजाम जिल्ला के आठगड़ मेँ स्थित मारदा (Sarana rakhyana marada)नामक स्थान पर तिन साल तक छुपाकर रखा गया था । इसके अलावा वाणपुर नयागड और ढ़ेकांनाल मेँ भी श्रीविग्रह को अग्यातंवास मेँ रखा गया था । ओड़िआओँ नेँ मुसलमानोँ के आगे घुटने नहीँ टेके वो हमारे बहू बेटियोँ के उपर अत्याचार किया हमारे कई मंदिर तोड़े हमारे रथ जलादिया पर