रविवार, 1 सितंबर 2013

भारत मेँ अंधविश्वास

21वीँ सदी मेँ भी हमारे समाज का एकबहुत बड़ा वर्ग निर्मूल धारणाओं और अंधविश्वासों से घिरा हुआ है। इनमें अशिक्षित और पढ़े-लिखे, दोनों ही प्रकार के लोग शामिल हैं। ये लोग वैज्ञानिक चेतना से दूर होने के कारण झाड़-फूंक, जादू-टोना और टोटकों से लेकर तरह-तरह के भ्रमों पर विश्वास करते हैं । जादू-टोना के नाम पर लोगों विशेषकर महिलाओं को प्रताड़ित किए जाने और बलि के नामपर छोटे बच्चों की हत्याएँ किए जाने की घटनाएँ आज भी बदस्तूर जारी है । इसे खत्म करने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें लगातार प्रयास करती रहती हैं लेकिन अब तक उसका कोई सार्थक हल नहीं निकल पाया है । यहां तक कि जादू-टोना के नाम पर प्रताड़ित होने वालों को न्याय दिलाने के लिए टोनही प्रताड़ना अधिनियम 2005 भी लागू किया गया है । लेकिन अधिनियम केवल कानून की किताबों तक ही सीमित रह गया है। कानून लागू हुए 8 वर्ष गुजर चुके हैं लेकिन समाज की सेहत पर उससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है । विज्ञान के इसयुग में हम भले ही अंतरिक्ष को मुट्ठी में करने और चाँद से लेकर मंगल तक घर बसाने की सोच रहे हों । लेकिन इस तरक्की के बावजूद हम मानसिक रूप से अब तक विकास नहीं कर पाए हैं और आज भी अंधविश्वास जैसी सामाजिक बुराईयों का साथ नहीं छोड़ रहे हैं । आजकल तो विज्ञान के सहायता से अंधविश्वास को और फैलाया जाता हे । कुछ लोग आए दिन कोई न कोई अफवाह फैलाकर लोगों को अंधविश्वास में डालते हैं। कभी तितली के परों पर गुरु नानक देव की फोटो, तोरियों के पत्तों में सांप की फोटो व कभी पीरों की दरगाह पर विदेशी लड़की का आधा शरीर सांप बना दिखाया है। कुछदिन पहले सोशियाल नेटवर्कीँ साइटोँ पर पांच सरवाला साँप नेँ भी खुब धुम मचाया था । जाहिर है इस तरह के फोटो लगाकर लोगोँ को और अंधविश्वासी बनाया जा रहा हे ताकि समाज मेँ भ्रमात्मक वातावरण को और उर्जा मिले । मेँ किसीके विश्वास पर लाँछन नहीँ लगाता परंतु बिना खोजबीन किये किसी भी वातोँ पर यकिन करलेने मेँ कैसी बुद्धिमानी ? विश्वास और अंधविश्वास में फर्क है। विश्वास हमें खुद पर भरोसा करना सिखाती है, हमें विवेकवान बनाती है, संशय का परिहार करती है, तर्कबुद्धि को धार देती है, जबकि अंधविश्वास विवेक को नष्ट-भ्रष्ट कर देती है, संदेह को बल देती है, और तर्क का तिरस्कार करती है ।और इस तरह श्रद्धा कब अंधविश्वास का रूप ले लेती है, मालूम नहीं चल पाता । यही कारण है कि लोग जागरूकता के अभाव में अंधश्रद्धा को ही धर्मऔर यहां तक जीवन का कर्तव्य मान बैठते हैं । यह सत्य है कि संसार में हरकोई ठाठ-बाट का जीवन व्यतीत नहीं कर पाता । कोई व्यक्ति सुखी है कोई दुखी है, कोई अमीर है तो कोई गरीब, किसी के औलाद है कोई नि:संतान है । सृष्टि के इस चक्र को बदलना किसी के बस की बात भी नहीं है। इसके उपरांत भी कुछ लोग सब कुछ बदल देने का दावा करते हुए भोले-भाले लोगों को राह से भटका रहे हैं । विपदा में फंसे लोगों से पैसा ऐंठने के लिए ये न केवल इनसे अनैतिक कार्य करवाते हैं बल्कि समाज में आपसी सौहार्द और भाईचारे के बंधनों को भी तोडऩे की कार्रवाई करते हैं । हम अपने आप को कितना ही मॉडर्न कहते रहें, लेकिन कहीं न कहीं हम आज भी पिछड़े हुए हैं । ग्रामीण इलाकों में आज तक भी ग्रामीण अंधविश्वास में इस कद्र फंसे हुए हैं । भारत मेँ आमतौर से बिल्ली के द्वारा रास्ता काटा जाने को अपशकुन कहा जाता है परंतु कुछ देशो मेँ बिल्ली को शुभ मानते हे ।भारत मेँ मान्यता है कौवे अगर छत पर बोलने लगे तो कोई महमान जरुर आता है जबकी उत्तरी आफ्रिकी देश कंगो मेँ कौआ को अशुभ मानते है । इसीतरह कुत्ते अगर रात को बेवजा रोने लगे तो उसे अशुभ लक्षण मानाजाता है ग्रीस मेँ भी लोग ऐसी ही मान्यता रखते हे । अंधविश्वास के उपर अगर कोइ निबंध लिखाजाय तो वो एक ग्रन्थ मेँ तगदिल हो जायेगा । उदाहरण तो और भी हे परंतु यह केवल अतिशयोक्ति होगी । अंधविश्वासों का परिणाम है कि हमारे देश में हर साल कितनी ही महिलाओं को ‘डायन’ के नाम पर मार डाला जाता है, तांत्रिक आज भी अबोध बच्चों की बलि दे रहे हैं। तमाम लोग अज्ञानवश बीमारी का इलाज झाड़-फूंक और गंडे-ताबीजों से करवाते हैं। बीमारियां पैदा करनेवाले बैक्टीरिया, वायरस, फफूंदियां और पैरासाइट गंडे-ताबीज या झाड़-फूंक को नहीं पहचानते। बीमारी का इलाज केवल औषधियों से हो सकता है जो रोगाणुओं को नष्ट करती हैं। अंधविश्वास के कारण हर साल बड़ी संख्या में मरीज जान से हाथ धो बैठते हैं। अबोध पशुओं की बलि देकर भी किसी बीमारी का इलाज नहीं हो सकता । ऐसा नहीँ की लोग जागरुक नहीँ हे पर भारत मेँ पढ़े लिखे मूर्खो की भी कोइ कमी नहीँ और जाहिर है जबतक अंधविश्वास रहेगा तबतक देश का नवनिर्माण होना सपना भर हे ।