रविवार, 23 फ़रवरी 2014

डोनीगर कि सच्चाई

अमेरिकन लेखिका वेन्डी डोनीगर एवं उनके सहायकोँ के द्वारा तैयार किये गये किताबोँ और आर्टिकल्स मेँ हिंदु धर्म तथा हमारे देवी देवता मुनी ऋषिओँ को विकृत और निम्न कोटी का बताया जाता रहा हे । अमेरिकन युनिवर्सिटी और स्कुल कलेजोँ मेँ ड़ोनीगर और गृप का काफी प्रभाव हे । ऐसे मेँ भारत के वारे मेँ पश्चिमी समाज मेँ गलत धारणाएँ जन्म ले रही हे । कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट मेँ चल रहा डोनिगर के खिलाफ केस मेँ पुस्तक प्रकाशन संस्था को लगा कि वो कैस हार जायेगेँ । तब इस गृप को अपनी नया किताब the hindus : the oldernetive history को बजार से वापस लाना पड़ा । बाद मेँ वेन्डी डोनीगर नेँ भारतीय कानुन पर हमला करते हुए कहा कि इस मेँ बदलाव कि जरुरत हे । वेन्डी डोनीगर और गृप हिँदु धर्म के देवी देवता ,श्रीराम,श्रीकृष्ण ,रामकृष्ण से गांधी तक तमाम भारतीय महापुरुषोँ को फ्रोइड कि मनोविग्यान के आधार पर मूल्याकंन करते हे जिसके केँद्र मेँ हे इगो सुपर इगो इड और सेक्स् । जेफ्री क्रिपाल कि पुस्तक Kali's chind मेँ लेखक ने रामक्रिष्नन परमहंस और स्वामी विवेकानंद के वीच सजातीय संबध होने के दावे किये । इस प्रकाशन के कई किताबोँ मेँ ऐसे ऐसे बात लिखेगये हेँ जिन्हे पढ़कर किसी हिंदु को क्रोध आ जायेगा । 73 साल के वेन्डी डोनीगर अपने किताबोँ के जरिये हिँदु धर्म पर हमले कर रही हे जो किसी भी हिँदु के लिये असहनीय और संवेदनशील विषय हे । राजीव मल्होत्रा जैसे कुछ हिँदुओँ ने वर्षोँ से डोनिगर के फिलाफ मुहिम छेड़ रखी है और वो अब सफल हो रहे हे । हिँदु धर्म ना समझकर इरादा पूर्वक आरोप लगानेवाले इन लेखकोँ को आखिरकार किसने यह अधिकार दिया कि वो हिँदु धर्म पर किचड़ उछाले । आज भारतीय युवा बिना जानेँ समझे डोनीगर कि किताबोँ को सत्य मान बैठता हे जबकि उसे हिंदुधर्म के वारे मेँ कोई ग्यान न होता । जब पूर्व और पश्चिम का मनोविज्ञान और आधारभूत धर्मदर्शन ही विपरीत है, तब इस बात की आशा करना ही व्यर्थ है कि कोई पश्चिमी “प्रोफ़ेसर” भारतीय मिथक को सही ढंग से समझेगा या समझाएगा । अकादमिक ढंग के प्रोफेसर्स या लेखकों से इस विषय में न्याय की कोई संभावना नहीं है । वहीँ इस प्रकरण से जो असली प्रश्न उठने चाहिए थे वे प्रश्न हमारे बिकाऊ मीडिया ने दबा दिए हैं. इस षडयंत्र में सदा की तरह पश्चिम की बौद्धिक गुलामी में डूबे साहित्यकार शामिल हैं. अब चूंकि साहित्य का मतलब भारत में अपने धर्म और परम्परा को कोसने से रह गया है इसलिए ऐसे साहित्यकारों से उम्मीद करना भी बेमानी है । साहित्यकारों के नाम पर हमारे पास जिन लोगों की भीड़ है वह हर प्रकार से आयातित मूल्यों की गुलाम है । ऐसे मेँ हिँदु धर्म को बचाने के लिये ऐसे किताबोँ को खरिदना बंद करने और जो लोग हिँदु धर्म पर लांछन लगा रहे है उनपर प्रतिवंध लगाना होगा ।