शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

- खड़ग सिंह के खड़कने से खड़कती हैं खिड़कियाँ, खिड़कियों के खड़कने से खड़कता है खड़ग सिंह -

- खड़ग सिंह के खड़कने से खड़कती हैं खिड़कियाँ, खिड़कियों के खड़कने से खड़कता है खड़ग सिंह -

इसे कहते पढ़ते या सुनते समय कभी आपके मन मे ये खयाल आया है ....

कि

भला ये खड़कसिँह नाम का कौनो बंदा था भी कि नहीँ ..

दरसल ये मुहावरा
पंजाब हरियाणा जैसे इलाकोँ मे ज्यादे प्रयोग किए जाते है
इस मुहावरे का प्रयोग उन लोगोँ के लिए किया जाता है जो उखाड़ तो कुछ नहीँ सकते हाँ बड़े घराने मे जन्म हो जाने भर के कारण खुदको शेर समझने लगते है ।
अब प्रश्न उठता हैये खड़ग सिँह कौन था.... !

*खड़गसिँह महाराज रणजीत सिँह के पुत्र व उत्तराधिकारी था
वह न केवल मंद बुद्धि था बल्कि उद्धत सिखोँ को वशंमेँ रखनेकि क्षमतासे भी रहित था

गद्दीपर बैठने के साल भर बाद ही 1840 ई॰ मेँ उसकी हत्या कर दी गयी

ये थे महान पिता के अयोग्य पुत्र....खड़गसिँह

वैसे खड़ग सिँह के नाम से एक प्रसिद्ध ड़ाकु के बारे मे कई जनसृति भी इन्ही इलाकोँ मे
प्रचलित है

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

अग्निमित्र

अग्निमित्र...
शुंगवंश के संस्थापक पुष्यमित्रका पुत्र और उत्तराधिकारी ।

अपने पिताके राज्यकालमेँ
वह नर्मदा प्रदेशका उपराजा हुआ करता था और उसने अपनी राजधानी विदिशामेँ रखी थी ।
विदिशा को आजकल भिलासा कहा जाता है ।
उसने अपने दक्षिणी पड़ोसी विदर्भ (बरार) के राजाको पराजित किया और शुंग राज्यको वर्धानदीके तटतक फैला दिया ।

946 ई.पू. मे वह अपने पिताका उत्तराधिकारी बना और पुराणोँ के अनुसार उसने आठ वर्ष राज किया ।

कालिदासके प्रसिद्ध नाटक मालविकाग्निमित्र मेँ इसी अग्निमित्रकी प्रेमकथा का वर्णन है ।
इसके नामसे अनकोँ सिक्के भी मिले है

संदर्भ

भारतीय इतिहास कोष
&
पर्जोटर डयनेस्टीज अफ दि कलि एज ,Page no.30-70....

अग्निकुल


"अग्नीकुल"राजपुतोँ की चार जातियोँ,
1.पवार-परमार
2.परिहार-प्रतिहार
3.चौहान-चाहमान
4.सोलंकी-चालुक्य

कि गणना अग्नीकुल क्षत्रियोँ मे होती है

चंदबरदाई के रासोके अनुसार अग्निकुलके इन चार राजपुतोँ के पूर्व पुरुष दक्षिणी राजपुतानेके आबु पहाड़मेँयज्ञके अग्निकुंड से प्रकट हुए थे ।इसमे इनके दक्षिण राजस्थानसे सम्बन्धित होनेका पता चलता है ।
कुछ लोग मानते है कि इसी यज्ञ से इन्हे शक्तिओँ के साथ यह कर्त्तव्य प्रदान किआ गया था कि वे उस सीमान्त क्षेत्र का वंशानुक्रमिक रक्षक बने रहेगेँ ।

[भारतीय इतिहास कोष (पृष्ठ -5)संशोधित अंश]

मूल पुस्तक मे लिखा गया है
कुछ लोगोँ का मत है कि यह यज्ञ विदेशी जातियोँ को वर्णाश्रम व्यवस्था मेँ लेनेके लिए किया गया था और इस प्रकारइन जातियोँ को उच्च क्षत्रियवर्ण मेँ स्थान दिया गया था । 

भारतीय इतिहास कोष के रचयिता हैश्रीमान् सच्चिदानन्द
भट्टाचार्य जी

इतिहासकार ने यह संदर्भ-

जर्नल अफ दि रायल एन्थ्रोपिलिजिकलइंस्टीट्युट ,पृ॰42
से लिए है

च्युँकि ये अंग्रेजी किताब किसी युरोपियन ने लिखा है
तथा उस लेखक ने राजपुतोँ को विदेशी बतलाया है

इसके पिछे इनका उद्देश्य भारतीयोँ को आपसमे लढ़वाने व भारतीयोँ को विदेशी साबित करना रहा होगा ।

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

कोझिकोड

कोझिकोड़ [Kozhikode)केरल का एक प्रशिद्ध ऐतिहासिक सहर !!!

समय के साथ युँ तो इस सहरके कई नाम प्रचलन मे आये हैपरंतु स्थानीय मलयालम भाषी अधिवासी प्राचीनकाल सेइसे कोझिकोड़ ही कहते चले आ रहे !
अंग्रेजीराज के समय यह सहर भारतमे कालिकट् के नामसे विख्यात हुआ !अरबी इसे आज भी‪#‎क्वालिक्यु‬,तामिल‪#‎कल्लिक्कोट्टाऐ‬, कन्नडा मे‪#‎कल्लिकोअटे‬और चाइनीज लोग‪#‎कालिफो‬कहते है ।.

.... विदेशी Kozhikode को‪#‎Calicut‬क्युँ कहा करते थे???

वजह है यहाँ के पुरातन सांस्कृतिक कपड़ा उद्योग ...

.यहाँ के लोग कार्पास् से एक खास तरह का कपड़ा बनाते थे जिसे 16 वीँ सदी तक cāliyansकहाजाता था
यह cāliyans कपड़ा उनदिनोँ युरोप मे खुब बेचा खरिदा जाता था और उसे युरोपियन तथा मध्यप्राच्य के लोग calico कहा करते थे... 

.[अंग्रेजी मे कालिको शब्द का सर्वप्रथम प्रयोगएमी मुसलिन् ने 1505 मे किया था !!]

1498 AD मे भास्को डा गामा जलजाहज़ द्वाराकोझिकोड़ से 18 K.m उत्तर मे Kappad नामक जगह पर उतरे थे।

हाँलाकि ऐतिहासिकोँ के माने तो पुरातन काल से ही कोझिकोड़मध्यप्राच्य ,युरोप और चीनीगणराज्य मे प्रशिद्ध थाप्राच्य मसाला व कप्पड़ा व्यापार के लिये ।

पुर्त्तगालीओँ से काफी पहले चीनी व आरवीओँ के साथ स्थानीयव्यापारी द्रव्य लेनदेन का व्पापार करते थे ।

पुर्त्तगालीओँ ने 1511 मे यहाँ एक फैक्ट्री लगायाजो 1525 कार्यक्षम रहाफिर 1615 मे यहाँ अंग्रेज आये और 1665 तक व्पापार किया1698 फ्रेँच और 1752 मे डच लोगोँ ने यहाँ अपना अपना डेरा बनाया

1765 मे मैसुर राज्य ने इस क्षेत्र को अपने अधिकार मे ले लिया और इसतरह से मैसुर राज्य पतन के बाद इस सहर का सत्व अंग्रेजोँ के हातोँ मे चलागया था !

ऐसा नहीँ है कि अंग्रेजोँ ने ही कोझिकोड़ को कालिकट् नाम दिया होहाँ अंग्रेजोँ ने इस सहर का आधिकारीक नाम कोझिकोड़ से कालिकटरखा जरुर है...

.कई विदेशी परिव्राजकोँ ने इस सहर के बारेमे अपने भ्रमण ग्रथं मे लिखा हैमुस्लिम् परिव्राजक Ibn Batuta (A.D. 1342–47)ने अपने भ्रमण ग्रंथ मेइस सहर को कालिकट् ही लिखा है

Ma Huan(1403 AD),एक चीनी व्यापारी अपने भ्रमणग्रथं मे इसका बर्णना करता पायागया है

प्रशिद्ध भुगोलशास्त्री Abdur Razzak(1442–43)ने भी यहाँ का दौरा किया था

इटालियन खोजकर्ता Niccolò de' Conti 1445 मे यहाँ पाँव रखनेवाले प्रथम ख्रिस्तियन भ्रमणकारी है ।

उन्होने अपने किताब मे इसे प्राच्य मसालोँ का मूलकेन्द्र बताया ।

वहीँ Russian भ्रमणकारी Afanasy Nikitin(1468–74) ने कोझिकोड़ को 'Calecut' कहा है और वो अपने किताब मे लिखते है
कि

ये भारत महासागर का "big bazaar." है ।

इन सब ऐतिहासिक सबुतोँ के आधार पर यह जरुर कहा जा सकता है कि प्राचीनकाल से ही कोझिकोड़ विदेशोँ मे Calicut के नाम से प्रसिद्ध रहा है ।

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

मिजबान


एक दम्पति के घर एकबार एक अतिथी आये
उनके लिये 9 पकवान 6 तरकारी बनौ
और उनकी प्रिय पापड़ भी

🍌 🍮🍬 🍩 🍨🍹🍻🍷🍹🍵🍰🍩🍳🍔🍯🍮🍖🍗🍤🍢🍆🍎🍏🍅🍊

अतिथी को सब परोसा गया लेकिन भावीजी पापड़ देना भुलगयी
अब अतिथी लाज सरम के मारे वोल नहीं पा रहे थे

फिर उनके दिमाग मे एक ठो
जोरदार idea
आयो
कहने लगे--- -- -- ----

पता है कल मैं तो मरते मरते बचा हुं जी
घर का मालिक हैरन...........

क्युं ...

अतिथी :- अरे एक लम्बा कारा नाग से
रस्ते में भेंट हो गयो थो

🐍🐍🐍
पता है कितना लम्बा था..............

उ जो पापड़ हैै वहां
😀😀😀😀😀😀
हा वहा तक लम्ब है.........

तब जाइके भावीजी के याद आत के पापड़ द्यौ नहीं और अपना भूल सुधार लेतो हैं😊😊😊😊😊😊😊