मंगलवार, 26 जनवरी 2016

जगन्नाथ स्वामी भवतु मे

न वैयाचे राज्यंन च कनकमाणिक्य बिभबम् !न यचेरहं रम्यंसकळजनकाम्यां बरबधूम् ।!

सदाकाळे काळे प्रमथपतिनागीतारचितो... !जगन्नाथ स्वामी नयन पथगामीभवतु मे .... !

!मुझे राज्य नहीँ चाहिए !स्वर्णालंकार मणिमाणिक्य मे मुझे लोभ नहीँ !सर्वजनकाम्य मोहिनी सुंदरी नारीरत्न भी चाहता नहीँप्रमथपति सदाशिव महेशजिनका नाम अहोरात्र जपते हैवही प्रभु मेरे नैनोँ को राह दिखाएमेरे नयन पथगामी बने !!-- --

आदि शंकराचार्य जब श्री जगन्नाथ धाम आये थेउनके मुखसे प्रभुजी के प्रथम दर्शन मे यह ब्रह्मवाक्य निकला व उत्कल कलिगंदेश मे प्रशिद्ध हो गया !