शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

_____भारत मेँ माओवादी_____

_____भारत मेँ माओवादी_____

दोस्तोँ आज भारतका सबसे बड़े दुशमन है माओवादी और इनके तथाकथित नेता । जब माओवादी आंदोलन कि शुरवात हुआ था तब यह एक शद्ध परंतु हिँसात्मक आंदोलन मात्र था । तब कुछ अत्याचारित बंगाली कृषकोँ नेँ जमिदारोँ के खिलाफ हतियार उठालिया । परंतु आज इस संगठन मेँ भ्रष्टाचार कुटकुट कर भरा हुआ है । भारत मेँ माओवादियोँ का नेटवर्क इतना फैलचुका है कि इनसे निपटने के लिये भारत को बहुत कुछ खोना होगा । आज माओवादी अपने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए आदिवासियों का जबरन इस्तेमाल कर रहे हैं। वरना माओवादी दर्शन और आदिवासियों के जीवन दर्शन में किसी तरह का मेल नहीं। माओवादी भी धुर वामपंथी हैं और उनकी राजनीति का ककहरा इस ऐतिहासिक वाक्य से शुरू होता है कि मानव जाति का इतिहास वर्ग-संघर्षों का इतिहास है, जबकि आदिवासी समाज एक वर्ग-विहीन समाज है।ये आदिवासीयोँ को सरकार के खिलाफ भड़काते है और भोलेभाले आदिवासी इन्हे भगवान मान लेते । इन्हे मिटाने के लिये पहले उनकी आमदनी के उन स्रोतों को खत्मकरना बहुत जरूरी है जिनसे वे अपने खर्चों के लिए पैसा जुटातेहैं । पर ये इतना आसान नहीँ है कोई भी सरकार को माओवादीयोँ से निपटने के लिये भारी किमत देनाँ होगा । परंतु माओवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों को झोंक देनेवाली सरकार ने कभी माओवादियों के आर्थिक स्रोतों को खत्म करने के पहलुओं पर विचार ही नहीं किया है । यह जानकर आचम्भा सा लगता है भाकपा (माओवादी) का देश के चालीस हजार वर्ग किलोमीटर इलाके पर बाकायदा वर्चस्व हैं जहां उसकी जनता सरकार नामक समांतर सरकार है और यह सरकार हर व्यक्ति से कर वसूलती है । और क्युँ कि स्तानिय जनता इनके साथ होती (वंदुक के नौक पर हि सही ) प्रशासन इनका कुछ भी नहीँ करसकती । माओवादी हमेशा तीन बातों पर जोर देते हैं- ‘मुक्त इलाकों का निर्माण’, ‘गांवों से शहरों को घेरना’ और ‘सत्ता बंदूक की नली से हतियाना ’। संक्षेप में अर्थ हुआ कि हिंसा, हत्या ही एकमात्र तरीका है जिससे विरोधियों को नष्ट कर पहले किसी इलाके पर कब्जा करो। फिर दायरा बढ़ाते जाओ। इसी तरह देश पर कब्जा होगा। किसी लोकतंत्र, समाज-सेवा, चुनाव, आदि पचड़े में मत पड़ो। इतना ही दूसरे कम्युनिस्टों से माओवादियों का भेद है । बहुत लोग भूल जाते हैं कि माओवादी भी कम्युनिस्ट ही हैं। उनके संगठन का औपचारिक नाम भी वही है । सुविदित है कि 1925 में दुनिया को लाल झंडे तले लाने के सपने के साथ शुरू हुआ भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन आज दर्जनों गुटों में बंटकर अंतिम सांसें ले रहा है । और आप मानेँ न माने दीप वुझने से पहले जोर से जलता है और यही हाल आज माओवादीयोँ का है । इनके हिरो रहे स्टालिन ने करोडों लोगों को किस कदर मौत के घाट उतारा, यह तो आप जानते ही होंगे ।
और स्टालिन ही क्यों, पोल-पोट तो और ज्यादा क्रूर था ।
साम्यवादी नेता माओ-त्से तुंग को 20 वीं सदी का एक ऐसा निर्मम नेता माना जाता है जिसने अहम तथा सत्ता लिप्सा के चलते न केवल 7 करोड़ लोगों की हत्या करवाई बल्कि'किसानों की क्रान्ति' के नाम पर चीन को दमन चक्र की चक्की में बुरी तरह से पीसा ।
माओ के लिए मानवीय जीवन का कोई मूल्य नहीं था। 1959-61 के मध्य जो भीषण अकाल पड़ा उसे माओ निर्मित माना जाता है तथा इसमें 3.80 करोड़ लोग भूख से मरे। जब लोग भूख से मर रहे थे तब माओ कमसिन लड़कियों के साथ रंगरलियां मनाने में व्यस्त था ।
इससे शायद कम्युनिस्टों को शर्म आ जाए। पर कम्युनिस्टों की तो आदत है गलतियाँ करना और भूल जाना - शर्म मगर इनको नहीं आती! कम्युनिस्ट और आदमी में यही फर्क है कि आदमी अपने कुकर्म पर शर्माता है, कम्युनिस्ट अपनी शर्मिंदगी को भी बौध्दिकता का जामा पहना जस्टीफाई करता है ।आज कल ऐसेऐसे फिल्मे आते है जो केवल एकतरफा होतेँ है उन्मेँ माओवादीयोँ कि तारिफ के रंग उकेरै जाते ताकि लोग इन्हे हिरो समझेँ परंतु आज भारत के लिये यह सबसे बडा भिलेन है इसमेँ कोइ दोराय नहीँ ।