रविवार, 26 फ़रवरी 2017

जब ब्राह्मण लडके के लिए घर से भागी शवाना

कहानी उस लड़की की, जो ऐसे माहौल में रहती थी जहां बचपन में चादर ओढ़कर ट्यूशन जाने की सलाह दी जाती थी। ये लड़की प्यार में ऐसी जगह से निकली और करियर में भी अच्छा किया। शबाना कहती हैं कि मैं ऐसी जगह रहती थी, जहां लड़कियां घर से कम ही निकलती हैं। अम्मी, अब्बा कम पढ़े लिखे थे। लेकिन हमारी पढ़ाई में अब्बा ने कोई अड़चन नहीं आने दी।
अब्बा की शर्त बस एक थी, ''पास होती चली जाओगी तो पढ़ती रहना। फेल होते ही घर बैठा दूंगा।'' अपनी कम्युनिटी में हमने ज़्यादातर औरतों को पिटते देखा है, जहां शौहर की बात माननी ही होती है। इसी वजह से अब्बा की बात का खौफ मन में बैठ गया। अम्मी की ख़्वाहिश थी कि बेटियां घर से बाहर निकलें, पढ़ाई करें। लेकिन हमारे समाज में पीरियड शुरू होते ही लड़कियों को बालिग मान लिया जाता था।
'चादर ओढ़कर ट्यूशन, स्कूल जाओ' और 'आंखें नीचे करके चलो, ग्रुप में जाओ' जैसी बातें की जाने लगीं। स्कूल, कॉलेज में मैंने टॉप किया। पढ़ाई में अच्छी थी। बीए के बाद एमए करने का मना था। जवाब मिला, ''एमए नहीं करने देंगे। एमए करके लड़कियां बूढ़ी हो जाती हैं।'' जैसे-तैसे एक प्रोफेसर की आर्थिक मदद से मैं एमए में दाखिला ले पाई।
इस बीच लड़कों के रिश्ते आने लगे। कोई लड़का ऑटो चलाता था तो कोई सुतली बनाता था। मुझे ऐसी जिंदगी मंजूर नहीं थी। तभी एक उर्दू अखबार में स्कॉलरशिप का विज्ञापन देखा। शुक्र ये रहा कि ये स्कॉलरशिप मुझे मिल गई। मैंने एक प्रोफेशनल कोर्स में दाखिला ले लिया। पास होने के बाद कई जगह नौकरियां की। इसी दौरान मेरी मुलाकात शोभित शुक्ला से हुई।

करियर और जिंदगी के शुरुआती दिनों में शोभित ने एक अच्छे दोस्त की तरह मेरी काफी मदद की। मैं शोभित को लेकर बेकरार तो नहीं थी, पर मन में सॉफ्ट कॉर्नर बढ़ता जा रहा था। हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे। आप शायद यकीन न करें लेकिन शोभित को शादी के लिए पहले मैंने ही प्रपोज किया।

अम्मी हमारे बारे में सुनते ही नाराज हो गईं। घर से निकलना बंद करने की बात होने लगी। शोभित ने पैर छूकर भी अब्बा को मनाना चाहा लेकिन एक मुस्लिम बाप अपनी बेटी के लिए हिंदू ब्राह्मण लड़के को कैसे कुबूल करते ?
उधर शोभित के यहां भी बवाल मच गया था। लहसुन, प्याज न खाने वाली ब्राह्मण फैमिली अपने बेटे के लिए एक मुस्लिम लड़की को कैसे कुबूल करते? हालांकि 'लड़की तुम्हारे घर ही आ रही है' जैसी बातों से शोभित की फैमिली काफी दिनों बाद मान गई। लेकिन मेरी फैमिली अब भी अड़ी हुई थी। घर में रहती तो दिक्कतें बढ़तीं। मैं बदकलामी नहीं चाहती थी और कम्युनिटी में शादी करके 'सुसाइड' नहीं कर सकती थी।

एक रोज जब नौकरी के लिए घर से निकल रही थी, तब सबसे गले मिली। उस रोज मेरे घर से निकलने को बाद के दिनों में लोगों ने 'भागना' कहा। हमने कोर्ट जाकर शादी कर ली। घर पर फोन कर बताने की हिम्मत नहीं थी तो बस बहन को एसएमस कर दिया, ''शोभित से मैंने शादी कर ली है। दिल दुखा हो तो माफ करना। पर अब मैं शोभित की पत्नी हूं।''

घर से कई फोन आए। मैंने जब हिम्मत कर फोन उठाया तो अब्बा बोले, ''किसी मुसलमान से शादी कर लेती या उसे ही मुसलमान बना लेती।'' अब्बा की कही बात मैं कैसे मान सकती थी। जब शोभित ने मुझे वैसे स्वीकार किया, जैसी मैं हूं। ससुराल में छोटे-मोटे समझौते करने पड़े। हालांकि एडजस्टमेंट का दौर मुश्किल रहा।
इस फैसले से जिंदगी पर कई असर पड़े। अब नॉनवेज नहीं खा पाती हूं। सास को किए वादे को निभाना चाहती हूं। सिर्फ मीठी ईद मना पाती हूं। रमजान पर इफ्तियार पार्टी जरूर करती हूं। किसी को हर्ट करना गलत है इसलिए बकरीद नहीं मना पाती हूं। जामा मस्जिद जाने को मिस करती हूं। कई बार रोती भी हूं। अब्बा के लिए अपनी पसंद की चप्पल न खरीद पाने और जरूरत के वक्त घरवालों के साथ न होने को मिस करती हूं।

पर जब मुझे जब जरूरत होती है, तब अम्मी-अब्बा मेरे लिए हमेशा मौजूद रहते हैं। लेकिन जब हम बड़े फैसले लेते हैं तो छोटी तकलीफें दरकिनार करनी होती हैं। आज अपनी जिंदगी में अच्छा कर रही हूं और खुश हूं। करियर भी अच्छा चल रहा है। काम कुछ ऐसा है कि कई बार लड़कियों की मदद करने का मौका मिलता है।

ताकि मेरे साथ उन लड़कियों के भी सपने पूरे हो सकें, जिनका घर से निकलना आज भी कुछ लोगों को चुभता है। मेरे घर से निकलने या समाज की जुबान में कहें तो 'मेरे घर से भागने' की यही जीत है।