शुक्रवार, 3 मार्च 2017

अन्न और अन्नाद


अन्न का अर्थ है भोग और अन्नाद का भोक्ता | मनुष्य अनाज खाता है इसलिए अनाज अन्न और मनुष्य अन्नाद ,,इसी तरह शाकाहारी पशु मासाहारी के लिए अन्न और मासाहारी अन्नाद होंगे |
पृथ्वी ,प्राण शरीर के लिए अन्न तथा शरीर इनके लिए अन्नाद होगा - " प्राण: वे अन्नम् -तै. भृगु. १.७ अर्थात प्राण अन्न है | शरीरमन्नादम् - तै. भृगु. १.७ अर्थात शरीर अन्नाद अर्थात भोक्ता है |
एतेरयेआरण्यक में पृथ्वी को अन्न तथा अग्नि को अन्नाद कहा है -
" पृथिवी चान्नमेतन्मयानि ह्मन्नानि भवन्ति ज्योतिश्र्च वायुश्र्चान्नादमेताभ­्या हीद सर्वमन्नमत्त्यावपनमा­काश आकाशो हीद सर्व समोप्यत आवपन ह वे समानाना भवति य एव वेद ,इति || - ऐत. आ. ३/१/२ अर्थात - पृथ्वी अन्न है अग्नि और वायु अन्नाद है | आकाश अवपन है क्यूंकि अन्न और अन्नाद भोग और भोक्ता आकाश में फैले है |
अब औषधि को अन्न तथा प्राणधारियों को अन्नाद बताते हुए लिखते है -
" प्राणभृतोsन्नादमोषधि­वनस्पतीन्हि प्राणभृतोsदन्ति ,इति " - ऐत. आ. २/३/३
औषधिया वनस्पति अन्न है और प्राणधारी अन्नाद है |
यहा औषधी वनस्पति से विभिन्न भोग मानव आदि प्राणियों के सिद्ध है - जैसे निवास स्थान बनाना (घोसला से लेकर मकान ) , दवाइयों के प्रयोग में , भोजन में , कुर्सी ,मेज ,पलंग और आग जलाने आदि में |
अब उभयदंत प्राणियों को भोक्ता तथा एक पंक्ति वालो को भोग -
" तेषा य उभयतोदन्ता: पुरुषस्यानुविधा विहितास्तेsन्नादा अन्नमितरे पशव स्तसमात्त इतरान्पशुनधीव चरन्त्यधीव हमन्नेन्नादो भवति -ए.आ. २/३/४
अर्थात मनुष्य समान दोनों तरफ दांत वाले अन्नाद है और एक पंक्ति दांत वाले अन्न अर्थात भोग है |
यहा इस पंक्ति से कुछ लोग पशु मॉस खाने का पक्ष लेने लगते है लेकिन यहा भोग और भोक्ता रूप में अन्न अन्नाद की बात है ,भोग अनेको प्रकार से होता है | जिसमे केवल भक्षण ही नही बल्कि सवारी , दूध पीना , खेत आदि कार्यो में उपयोग लेना भी है | क्यूंकि यहा दांतों के आधार पर वो पशु भी आ गये जिनका मॉस भक्षण उन शास्त्रों में भी निषेध है जिनको हम क्षेपक या अनार्ष कोटि में रखते है जैसे - घोडा ,गधा ,खच्चर इत्यादि | अत: उभयदांत वाले मासाहारियो जानवरों के लिए तो यह एक पंक्ति वाले भक्ष्य है लेकिन मनुष्यों के लिए नही किन्तु मनुष्य के भोग होने से अन्न अवश्य है |
इस बात को अन्य प्रमाणों से भी समझाते है -
अर्थववेद की श्रुति इस बात का निर्देश करती है " पय: पशुना रसमोषधीना " - अर्थव. १९/३१/५ अर्थात पशुओ से दूध ,औषधियों से रस लेता हु |
पयो धेनुना रसमोषधीना जवमर्वता कवयो य इन्वथ - अर्थव. ४/२७/३ अर्थात गोओ से दूध ,औषधियों से रस तथा घोड़ो से वेग ...
यहा बताया है कि किस किस का किस रूप में भोग लेना चाहिए | मॉस रूप में पशुओ का मनुष्य के लिए भगवती श्रुति में विधान न होने से उपरोक्त श्लोको का मॉस भक्षण में तात्पर्य लेते है तो यह श्रुति विरुद्ध होने से अमान्य ही होगा |
केवल अन्न कहने मात्र से कोई भक्ष नही हो जाता है क्यूंकि मनुष्य को भी अन्न कहा है - " अहमन्नमहमन्नम | अहमन्नादोsमन्नादोsहम­न्नाद: | " - तै. भृगु. १०
अर्थात मै अन्न हु,मै अन्न हु ,मै अन्न हु | आगे कहा है मै अन्नाद हु मै अन्नद हु मै अन्नाद हु |
इस वाक्य से मनुष्य अन्न सिद्ध हो रहा है लेकिन क्या कोई मनुष्य के मॉस का भक्षण मनुष्य को अन्न होने से इस वचन से कर देगा बल्कि यहा यह अर्थ है कि मनुष्य भोग है तो किसी अन्य का भोक्ता भी | जैसे नौकर चाकर का रूप में मनुष्य भोग और राजा रूप में भोक्ता इस तरह मनुष्य के लिए मनुष्य अन्न और अन्नाद हुआ |
इस विषय पर एक और उत्तम तर्क देते है - जैसे माता ,बहन और पत्नि इन सभी को स्त्री कहा है लेकिन विवाह सम्बन्ध के लिए पत्नि ही है अन्य नही उसी तरह पशु , अनाज ,वायु ,पृथ्वी आदि को अन्न कहने से इनमे केवल अनाज ही मनुष्य के खाने के लिए है अन्य द्रव्य नही |

#दिनेश शर्मा

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