शनिवार, 1 अप्रैल 2017

●●●●मनुस्मृति नहीं आपका सोच गलत है●●●●

ब्राह्मणां जायमानो हि पृथिब्यामधिजायते ।

ईश्वरः सर्वभूतानां
धर्मकेशस्य गुप्तये ।। 99 ।।

सर्व स्वं ब्राह्मणस्येदं
यत्किञ्चिज्जगतीगतम् ।
श्रेष्ठवेनाभिजनेनेदं
सर्व वै ब्राह्मणोऽर्हति ।। 100 ।।

[[मनुस्मृति प्रथमोध्याय ]]

ब्राह्मण का उत्पन होना ही पृथ्वी मे श्रेष्ठ होता है ,क्युँ कि संपूर्ण जीवोँ के धर्मरुपी खजाने कि रक्षार्थ वह प्रभु है (अर्थात् धर्मोपदेश ब्राह्मण द्वारा ही होता है) !!99!!

जो कुछ जगत् के पदार्थ है वे सब ब्राह्मण के है ।
ब्रह्मोत्पतितिरुप श्रेष्ठता के कारण
ब्राह्मण सम्पुर्ण को ग्रहण करने योग्य है ।। 100 !!

अब कनैया कुमार जैसे जातिवादी लोग इन दोनोँ श्लोकोँ का अर्थ करते समय
#ब्राह्मण शब्द को जाति विशेष ही समझ बैठते है ।

इसमे मनुमहाराज कि क्या गलती ?
जब आधुनिक मनुष्य ही अर्थ का वीरर्थ करने मे सिद्धहस्थ है ।

पुरातन कालमे
ब्राह्मण,
ब्रह्मवेत्ता विद्वान को कहाजाता
था अर्थात् वे जिन्हे ब्रह्माण्ड का रहस्य ज्ञात होता था
वे जो ज्ञान के सागर होते थे
कालान्तरमे उनके पुत्र कन्या दी ब्राह्मण कहलाये
और यह विशेषज्ञयता निरन्तर बढ़ता चला गया !!

वैज्ञानिक मानसिकता संपन्न व्यक्ति मनुस्मृति मे उत्तरगोलार्ध दक्षिणगोलार्ध ढ़ुंड रहा है
ये उसकी अपनी मानसिकता है
मैँ इसे उसकी मुल्लोँ से प्राप्त मिलावटी ज्ञान ही समझता हुँ !!

मनुस्मृतिमे ऐसे कई विवादित श्लोक है
जिसे मुल्ले ,और जातपात मे अंधे हो चुके निम्नवर्ग के लोगोँ ने समाज के समीप गलत ढ़ंग से पैस किया हुआ है ।

मनुस्मृति गलत नहीँ
आपका सोच गलत है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें